इन मजदूरों के कल्याण के लिए श्रम कल्याण बोर्ड द्वारा औद्योगिक एवं वाणिज्यिक श्रमिकों के लिए 25 कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जबकि हरियाणा भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड द्वारा पंजीकृत श्रमिकों के लिए 22 कल्याणकारी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। इन योजनाओं में श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य, काम के बदले उचित वेतन, बच्चों की शिक्षा, रहने सहने की उचित व्यवस्था का प्रावधान है। हरियाणा के सरकारी आंकड़ों में असंगठित श्रमिकों के पंजीकरण में हरियाणा पूरे देश में प्रथम स्थान पर हैं। प्रदेश के श्रम विभाग के पोर्टल पर 27 हजार कारखानों के 21 लाख 44 हजार श्रमिक पंजीकृत हैं। इसके अलावा 3 लाख 55 हजार प्रतिष्ठानों में 27 लाख 49 हजार श्रमिक पंजीकृत हैं। केंद्र सरकार के ई-श्रम पोर्टल पर प्रदेश के लगभग 50 लाख श्रमिक पंजीकृत हैं। इस तरह की योजनाओं पर श्रमिकों को 714 करोड़ की सहायता प्रदान करने का भी दावा किया जा रहा है। असंगठित मजदूरों के रहन सहन पर रिसर्च कर रहे MBA के स्टूडेंट गोबिंद चौहान ने बताया कि सबसे बुरी स्थिति, चावल मिल, प्लाई इंडस्ट्री ,ईट भट्ठे, माइनिंग में काम करने वाले असंगठित मजदूरों की है। अनाज मंडियों में काम करने वाले मजदूरों की है। करनाल सहित पूरे प्रदेश में आलम यह होता है कि यह श्रमिक 6 बाई 6 के एक छोटे से कच्चे कमरे में रहते हैं। जिसमें हर वक्त हादसा होने का अंदेशा रहता है। तरवाड़ी के शिव शक्ति राइस मिल में जो हादसा हुआ है, वहां भी मजदूर इसी तरह के असुरक्षित कमरे में रह रहे थे। इस हादसे के बाद जब असंगठित मजदूरों की स्थिति की हकीकत जानने के लिए दैनिक भास्कर डिजीटल ने मौके पर जाकर देखा तो पाया कि जिन सुविधाओं का सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है, वह सुनने में बहुत अच्छी लगती है, लेकिन उन्हें लागू ही नहीं किया गया है। वहां पर रह रहे मजदूरों ने बताया कि लेबर इंस्पेक्टर भी कभी मजदूरों की बात सुनते नहीं है। वह भी बस मालिकों से मिल कर चले जाते हैं। दैनिक भास्कर ने जब ग्राउंड पर जाकर मजदूरों से बात की तो उन्होंने अपनी पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया कि उनको यह तक पता नहीं है कि जिले में लेबर इंस्पेक्टर का नाम क्या है? इतना ही नहीं यदि उनका शोषण होता है तो वह ठेकेदार के पास जाते हैं। वह सबसे ज्यादा भरोसा ठेकेदार पर करते हैं, लेकिन ठेकेदार ही उनके शोषण का मुख्य सूत्रधार है। मजदूरों के लिए काम करने वाली संस्था आस्था के मीडिया इंचार्ज डॉक्टर अशोक शर्मा ने बताया कि मजदूर छोटे से कमरे में ही सोना और खाना पकाने का काम करते हैं। न यहां लाइट, न पानी और न ही सोने के लिए कोई चारपाई। वैसे तो राज्य में अकुशल श्रमिकों का वेतन 9803.24 रुपए मासिक है। लेकिन इस वेतन में भी ठेकेदारों का डाका सा पड़ा रहता है। हालांकि पैसे बैंक खाते में जाते है कि लेकिन उसके बावजूद भी पहले से ही ठेकेदार द्वारा कमीशन सेट कर लिया जाता है। राइस मिलों में काम रहे श्रमिकों की माने तो श्रम विभाग के अधिकारी मजदूरों की कम, उद्योगपतियों के लिए ज्यादा काम करते हैं।