आंकड़ों की बात करें तो मनरेगा के बजट में पिछले करीब दो वर्ष में लगभग 38 हजार करोड़ रुपये की कटौती हुई है। वहीं, इन्हीं दो वर्षों में 30 प्रतिशत मजूदरों की मनरेगा में एंट्री हुई है। कोरोना के बाद कई छोटे कारखाने व लघु उद्योग बंद हुए, तो मजदूरों ने जॉब कार्ड बनवाकर मनरेगा में अपनी एंट्री करवा ली। ऐसे में कम होता बजट व मजदूरों की बढ़ती संख्या भी बेरोजगारी का मुख्य कारण है। कैथल की बात करें तो 2020 से पहले करीब 150 गांवों में काम था, लेकिन अब जिले के 35-40 गांवों को छोड़कर बाकी गांवों में मजदूर काम मांग रहे हैं।
मजदूरों को काम मिल भी जाये, तो मेहनताना पर्याप्त नहीं मिलता। इसका बड़ा कारण ठेकेदारी प्रथा भी है। ठेकेदार मजदूरों को कम से कम मजदूरी पर रख लेेते हैं। ना केवल भवन निर्माण और निजी कार्य में, बल्कि सरकारी विभागों में भी ठेकेदारी प्रथा चली हुई है। कई सरकारी विभागों में नियमित कर्मचारियों के बजाय ठेकेदार के माध्यम से कम पैसों में काम हो रहे हैं।
सिटी थाने के पास लेबर चौक पर कैथल शहर की विभिन्न कॉलोनियों के अलावा जाखौली, सीवन, पट्टी खोत, अर्जुन नगर, देबवन आदि गांव के लोग मजदूरी के लिए आते हैं। लेबर चौक पर बैठे मजदूरों का कहना था कि उनके लिए भी कोई ऐसी योजना होनी चाहिए कि जिस दिन दिहाड़ी नहीं मिलती, उन्हें सरकार द्वारा कुछ राशि मुहैया करवाई जाए ताकि परिवार का पालन पोषण हो सके।
कैथल सिटी थाने के पास लेबर चौक पर रोजाना सैकड़ों श्रमिकों का जमघट देखा जा सकता है। ये मजदूर रोजगार की तलाश में सुबह ही चौक पर आकर बैठ जाते हैं। इनमें से ज्यादातर को काम नहीं मिलता और शाम को खाली हाथ ही घर लौट जाते हैं। मजदूरों का कहना है कि अगर उन्हें दिहाड़ी मिल जाए तो रोज़ी और ना मिले तो रोज़ा यानी व्रत रखने जैसा काम होता है।
श्रमिक अधिकारों के सुरक्षा कानून में ढील और व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा ने मजदूरों की चुनौतियां बढ़ा दी हैं। ग्रामीण क्षेत्र में स्थाई रोजगार नहीं है। मनरेगा के रोजगार की भी एक सीमा है। घर का खर्च चलाने के लिए मजदूरी करना मजबूरी हो गई है। मशीनी युग ने कहीं ना कहीं हाथों का रोजगार छीनने का काम किया है। मशीनों के कारण जो कार्य पहले 8 से 10 या 15 दिन में होता था, वह 3 या 4 दिन में निपट जाता है। वह कार्य चाहे खेतों में गेहूं निकालने के लिए मजदूरी करने का हो या फिर मकान बनाने का।
सहायक श्रमायुक्त अनिल शर्मा, पंचकूला से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जो दिहाड़ीदार मजदूर रजिस्टर्ड हैं, जो कंस्ट्रक्शन वर्कर रजिस्टर्ड हैं, उनके लिए सरकारी योजनाएं हैं और मजदूरों को योजनाओं का लाभ मिल भी रहा है। उन्हें स्वास्थ्य सेवा, चश्मे, घूमने जैसी योजनाओं का लाभ मिलता है। मजदूरों के लिए एक वेलफेयर बोर्ड भी है, जो उनके हकों के लिए काम कर रहा है। अगर किसी को कोई परेशानी है तो वह लेबर वेलफेयर बोर्ड में क्लेम डाल सकता है।