सरकार ने ब्रिटिश हुकूमत के दौर में बने कानून भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य कानून में बदलाव की पहल की है। इस महीने की शुरुआत में, संसदीय पैनल ने कई संशोधनों की पेशकश की थी, लेकिन कानूनों के हिंदी नामों पर कायम रहे। राजनीतिक दलों द्वारा लगातार इस कदम की आलोचना करने पर संसद की एक समिति ने मंगलवार को साफ कर दिया कि तीन प्रस्तावित आपराधिक कानूनों का नाम हिंदी में होना असंवैधानिक नहीं हैं।
दरअसल, अनुच्छेद 348 के अनुसार शीर्ष अदालत और हाईकोर्ट के साथ-साथ अधिनियमों, विधेयकों और अन्य कानूनी दस्तावेजों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अंग्रेजी भाषा होनी चाहिए। राज्यसभा में समिति द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया, ‘समिति ने संहिता शब्द को अंग्रेजी में भी पाया, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 348 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है। समिति गृह मंत्रालय के जवाब से संतुष्ट है।
बता दें कि सरकार ने ब्रिटिश हुकूमत के दौर में बने कानून- भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य कानून में बदलाव की पहल की है। बीते अगस्त में संसद के मॉनसून सत्र के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता (IPC), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Cr.PC) और भारतीय साक्ष्य विधेयक (Indian Evidence Act) पेश किया था।